एकदम कच्चे एवं एकदम पके हुए बेलफल की तुलना में, पेड़ की डाल के अधपके बेलफल से बनाया गया रस एवं चूर्ण, ज्यादा लाभकारी होता है। चूर्ण को पानी में मिलाकर रस के रूप में इस्तेमाल करने के अलावा आँवला एवं बेलफल के चूर्ण को सब्जी, सलाद, चटनी, दलिया, खिचड़ी, भात आदि पर ऊपर से बुरक कर भी सेवन किया जाता है। मित्रों, आंवला एवं बेलफल, इन दोनों का किसी भी रूप में सेवन करना, कब्ज एवं पेट संबंधित सभी प्रकार के रोगों में रामबाण सिद्ध होता है।
हम बाजार में निर्मित आंवला, बेलफल आदि के संग्रहित रस, एवं चूर्ण आदि को यथासंभव उपयोग में न लेने की ही सलाह देते हैं, कारण यह कि जो आँवले फंगस युक्त काले हरे, पिलपिले, एवं सड़ रहे होते हैं, यकीन मानें, उन्हें गुठली सहित धूप में सुखाकर, निर्माताओं द्वारा, चक्की के दो पाटों के बीच, पिसवाकर, जब उनका बारीक चूर्ण बना दिया जाता है, तो फिर इन चूर्णों की गुणवत्ता के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाता साहेब?
इसी प्रकार आजकल मार्केट में, अच्छे बेलफल के फ्रेश गूदे को निकालकर सुखाने और पिसवाने की तो बात छोड़िए! बेलफल का चूर्ण बनाने के लिए आजकल चारों ओर बिना किसी ज़हमत के, बेलफल को उसके खपरैल सहित ही सुखाकर पीस दिया जाता है। इतना ही नहीं पैसे बनाने के चक्कर में सड़े, लाल, काले, खट्टे, खपरैली, बेलफ़लों को सुखाकर, पीस दिए जाने पर, किसी को कुछ पता नहीं चलता जी!!!!!
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